कुंडली में मृत्यु योग
कुंडली में मृत्यु योग- जन्म लेने वाले प्रत्येक मनुष्य और जीव-जंतुओं की मृत्यु सुनिश्चित है। किसी व्यक्ति की मृत्यु कब होगी? कहां होगी? किन परिस्थितियों में होगी? मौत जीवन की औसत आयु के अनुरूप प्राकृतिक होगी, या फिर आकस्मिक तौर पर आकाल मृत्यु होगी? इन बातों की तमाम जानकारियों का विश्लेषण ज्योतिष शास्त्र के द्वारा जन्म कुंडली के ग्रहों की दशा और दिशा के अनुसार किया जा सकता। प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में मृत्यु योग की पर्याप्त जानकारी होती है।
विज्ञान जगत मौत पर विजय हासिल करेन की कोशिश में हैं। वैज्ञानिक मृत्यु को लेकर तरह-तरह के विश्लेषण करने में जुटे हैं, फिर भी वे किसी भी स्वस्थ व्यक्ति की उम्र-सीमा तय नहीं सुनश्चित कर पाए हैं, जबकि ज्योतिष विज्ञान मंे एक अनुमानित मृत्यु का हिसाब लगाया जा सकता है। यहां तक कि मौत की वजह भी बतायी जा सकती है। यहां तक कि प्राकृतिक मौत के आतिरिक्त किसी बीमारी से मौत होने की स्थिति में रोगों के बारे में सटीकता लिए हुए आशंका व्यक्त की जा सकती है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार किसी व्यक्ति की मृत्यु के बारे पता करने के कई तरीके हैं। हालांकि इस बारे में किसी को सटीकता के साथ बताना एक अनैतिक कार्य के समान समझा गया है। इससे व्यक्ति की भवाना में काफी तेजी से उथल-पुथल होने लगती है। मृत्यु योग को एक तरह से अशुभ योग श्रेणी में रखा गया है, क्योंकि इनसे शुभ योग बाधित हो जाते हैं। इस बारे में दावे से साथ विश्लेषण नहीं करने के पीछे एक कारण यह भी है। फिर कुंडली के लग्न के आधार पर आठवें घर से मृत्यु का आकलन किया जा सकता है। ऐसी स्थिति बनने के पीछे कई कारण बताए गए हंै। उनमें जीवनकाल में शत्रुता के बढ़ने, मनमानी करने अर्थात स्वार्थ की भावना से कार्य करने, दूसरों की धन-संपदा पर अपना अधिपत्य बनाने या फिर अनैतिक तरीके से धनोपार्जन करने, हत्या जैसे कुकर्म से भी नहीं वाज आने बातों अहम् है। अर्थात मनवीयता को दांव पर लगाने वाले कार्यों से मृत्यु योग जैसे अशुभ योग बनने की आशंका प्रबल रहती है।
मृत्यु योग बनने में ‘रिक्त तिथि’ की विशेष भूमिका होती है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यह स्थिति चैथे, नौवें या 14वी तिथि को बन सकती है। यदि इस तिथि के दिन बृहस्पतिवार पड़ता है, तब अशुभ योग बनता है। यही मृत्यु योग कहलाता है। इसी तरह से पूर्ण तिथि कहलाने वाली तिथियों- पंचमी, दशमी, पूर्णिमा या अमावस के दिन शनिवार होने से भी मृत्यु योग के बनने की आशंका प्रबल हो जाती है। मृत्यु योग बुधवार के दिन तृतिया, अष्ठमी या त्रयोदशी की तिथि आने से भी बन सकती है।
इसके अतिरिक्त रविवार या मंगलवार को प्रतिपदा की छठी या ग्यारहवीं की तिथि को भी काफी अशुभ मना गया है, तो ‘भद्रा तिथि’ को भी अशुभ की श्रेणी में रखा गया है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार दूसरी तीसरी या बारहवीं तिथि के दिन सोमवार या बुधवार पड़ने से मृत्यु योग बनने की प्रबलता बढ़ जाती है। इस तरह से बनने वाले अशुभ योग के दिन किसी भी प्रकार के शुभ कार्य करने की मनाही होती है। खासकर यात्रा करने की विशेष तौर पर रोक है।
आकस्मिक मृत्यु के एक महत्वपूर्ण कारक चंद्रमा को भी बताया गया है। चंद्रमा को मन का ग्रह कहा गया है, जो व्यक्ति के मनोविज्ञान को गहराई से प्रभावित करता है। किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा के कमजोर होने पर वह कमजोर मनोबल का बन अवसाद से घिर जाता है और वैचारिक सोच में कमी आ जाती है और वह मृत्यु को स्वयं वरण करने की स्थिति में आ जाता है। कमजोर चंद्रमा के आठवें घर में होने और उसके साथ मंगल, शनि व राहू का एकसाथ मिलने के योग बन जाएं तब जो मौत होती है वह दिल को दहला देने वाली होती है।
यदि किसी की कुंडली में कर्क राशि का मंगल आठवें घर में आ जाता है, तब उसके पानी से डूबकर मरने की आशंका बन जाती है। इसके अतिरिक्त आठवें घर में एक से अधिक अशुभ ग्रह होने की स्थिति में भी आकस्मिक मृत्यु हो सकती है। यह मृत्यु हत्या, दुर्घटना, आत्महत्या या बीमारी के वजह से हो सकती है। जैसे चैथे घर में सूर्य और मंगल के मेल होने से असाध्य रोग आकस्मिक मौत का कारण बनता है। दूसरे घर में शनि, चैथे घर में चंद्रमा, दशवें घर में मंगल होने पर भी अशुभ योग बनाते हैं और इस योग से ग्रसित व्यक्ति की मौत दुर्घटन या गंभीर चोट लगने से हो सकती है।
यदि किसी व्यक्ति की मौत कुंग में गिरने या पानी में डूबने से हुई हो तो निश्चित तौर पर उस व्यक्ति की कुंडली के अनुसार उस वक्त शानि कर्क और चंद्रमा मकर राशि में विचरित कर रहे होंगे। इसी तरह से जहर खाकर प्राण त्यागने, हिंसक जानवारों के शिकार होकर या जलकर मरने वाले व्यक्ति की कुंडली के दूसरे घर में शनि, चैथे घर में चंद्रमा और दशवें घर में मंगल होता है। ऐसे लोग कैंसर जैसे रोग से भी मर जाते हैं।
और तो और कई बार देखा गया है कि कसी व्यक्ति के लिए शुभ ग्रह भी उसके प्राणों की रक्षा कर पाने में असफल होते हैं। जैसे दशवें, चैथे, आठवें या लग्न में शुभ ग्रह होने पर भी इनपर कुटिल दृष्ट बनाने वाले पाप ग्रह उसे मौत के मुंह की ओर ले जाते हैं। उनकी मौत किसी धारदार हथियार से हाती है। गोली लगने से मरने वाले व्यक्ति की कुंडली पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि उसके नौवं घर में मंगल और शनि, सूर्य, राहू किसी घर में एक साथ थे।
चंद्रमा के साथ मंगल, शनि और राहू का आठवें घर में एकसाथ होने पर व्यक्ति की मौत मिर्गी या अवसाद जैसे रोग से हो सकती है, तो नौवं घर में बुध और शुक्र के होने की स्थिति में व्यक्ति हृदय रोग से मर सकता है। गठिया या डायबटिज से मरने वाले व्यक्ति आठवें घर में शुक्र दूसरे अशुभ ग्रहों की चपेट आ चुके होते हैं। फांसी लगाकर आत्महत्या करने वाली औरत की जन्म कुंडली सूर्य और चंद्रमा लग्न से तीसरे, छठे, नौवें या बारहवें घर में दूसरे पाप ग्रहों का मेल हो जाता है। इसके अतिरिक्त यदि किसी औरत की कुंडली के दूसरे घर में राहू, सातवें घर में मंगल होने की स्थिति में उसकी आकस्मिक मौत जहरीले भोजन से होती है।